करूणा झा
राजबिराज । मैथिल समाज में ज्ञान के अभाव नै धरि मैथिल समाज सदैव अभावग्रस्त जीवन बिताबक लेल अभिशप्त रहल अछि। आखिर ज्ञान रहितो अभावक जीवन कियैक ?
अहि विषय पर चिंतन-मनन करबाक प्रयोजन कहियो मैथिल समाज के अग्रणी बौद्धिक वर्ग नैं बूझलनि।
झूठ गढिक सच प्रतीत करेबाक कला में निपुण मैथिल नींद स उठिक पुनः शयन काल धरि भने विज्ञान क आविष्कृत वस्तु पर आश्रित छथि धरि हरदम विज्ञान के भर्त्सना केनाई हुनक युगधर्म बूझू।
पंडिताई, दरबानी, रसोईयागिरी, क्लर्की आ कि साहबी पद पर आसीन मैथिल धर्म स एको क्षण दूर नैं रहि सकैत छथि लेकिन आचरण सदैव धर्मविरोधी करता से निश्चित। अपन बेटी क ब्याह में दरिद्र के स्वांग करय बला मैथिल बेटा केर विवाह काल में धन्ना सेठ जकां मोल-तोल केनाई पुरूषत्व बूझै छथिन।
स्वातंत्र्योत्तर भारत में लगभग पचहत्तर बरिस के कालखंड में भने ललित नारायण मिश्र छोइड़ कोनो मैथिल राजनेता राष्ट्रीय राजनीति में चर्चित नै भेलाह धरि एहन मैथिल किंचिते भेटताह जिनका देश के सामयिक राजनीति पर विशेष ज्ञान नै होइन्ह। सब एक स बढिक एक तीरंदाज।
हिंदुत्व पर गर्व करै बला मैथिल समूह के हिंदू सबहक करूण नियति पर कोनो दुश्चिंता नै बस्स मुसलमान आ अन्य धर्म के आलोचना में हुनक थोथी फट्ट स फूइज जाइत छैन्ह। अपन भविष्य अनहार छैन्ह तकर कोनो चिंता नै दोसर के घर कोना अनहार हेतै तकर सबटा उपाय मैथिल के कंठस्थ मानू।
दरिद्राक स्थायी ठिकाना बनल मिथिला क्षेत्र में सबस पैघ कमी प्रगतिवादी सोच के रहल छैक । अपवाद के छोइड़ मैथिल दियादी झगड़ा में अपन हिस्सा बेसी लेबाक लेल जतेक उद्यमी होइत अछि ततेक जे अपन समांग सबके आगू बढेबा में रहित त मिथिला के कायाकल्प भऽ गेल रहित धरि बुद्धि के बानर मैथिल एहेन सोच कियैक रखता। अपने में छीना-झपटी करबाक लेल तत्पर मैथिल स्वयं अपन सबस पैघ दुश्मन बूझू।
बिहार के राजनीति में सेहो मैथिल लतियाओल, जूतियाओल रहि गेलास कियैक त समग्रता के दृष्टिकोण कहियो रहबे ने केलनि। जे जीत गेलाह से पूज्य भऽ गेलाह। अपना के पूजबेनाई मैथिल मानसिकता क अप्रतिम उदाहरण थिक।
पूरा देश में जतेक मैथिल आईएएस, आईपीएस आ सरकारी अधिकारी छथि से जौं मिथिला लेल सोचने रहितथि त ई क्षेत्र बहुत उन्नति करित धरि फेर वैह स्वकल्याण के सर्वनाशी मानसिकता। जे भेला पैघ हुनका लटकल घेघ।
मिथिला में नारी सम्मान एखनो रसातल में अछि। पुरूष प्रधान मैथिल समाज एखनो धरि नारी स्वतंत्रता आ नारी अधिकार के मान्यता देबा स विरत छथि। समय चक्र में जरूर किछु परिवार में नारी घर स बाहर के दुनिया में अपन उपस्थिति दर्ज करौलनि अछि धरि समग्रता में मैथिल नारी घर-खरिहान स बाहर वर्जित छथि।
साहित्य-संस्कृति हो बा कला सबतरि आधिपत्य के लड़ाई छैक। जे एकबेर कुर्सी हथियौलाह हुनका हटेनाई बिना अदालती कार्रवाई के मोश्किल।
क्षेत्रीय राजनीति के शिकार मैथिल पूरा देश आ विदेश तक पहुंचि गेलाह लेकिन मानसिकता में परिवर्तन नै भेलनि तैं सबतरि हुनकर स्थिति दयनीय रहि गेल अछि।
श्रेष्ठता के बोध मैथिल के निकृष्ट बनबाक लेल बाध्य केने छैक। किछु टका प्राप्ति लेल सेठ के माई(बाप कहनिहार मैथिल अपना क्षेत्र में बाघ बनैछ। निकृष्टतम कार्य तक स घृणा नै करैछ आ किछु पाई कमेलाक बाद सबहक माथ पर मूतबाक दुस्साहस करैछ।
देश – समाज में अनेकों आंदोलन अधिकार लेल समय – समय पर होइत रहल बा होइत अछि। कहियो मैथिल के अपन अधिकार लेल आंदोलित देखलहुंरु भाग्य आ भगवान भरोसे मृत्यु तक जीनाई के अभ्यस्त मैथिल विश्व समाज क लेल अलौकिक कियैक त एहेन अचेतन, मूईल, सत्ता क कीर्तनियां समाज सचमुच अविश्वसनीय, अविस्मरणीय मानल जा सकैछ ।
(अपन समाजक आलोचना समाज के हित में करब अनुचित नै। अहि आलेख स व्यथित होयब त अपना में सुधार के सूत्रधार बनू। एकर पक्ष – विपक्ष में लिखू। अपशब्द बा विषयांतर केनाई एकर समुचित जवाब नै भऽ सकैछ)